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अहिंसा हमे वीर,निर्भय औऱ साहसी बनाती है-जिनेन्द्रमुनि मसा

गोगुन्दा 22 अप्रैल 2025, कांतिलाल मांडोत ! अहिंसा हमे निर्भय बनाती है।उपरोक्त विचार श्रमण संघीय महाश्रमण जिनेन्द्रमुनि मसा ने जसवंतगढ़ से विहार कर तरपाल स्थानक भवन में उपस्थित आगन्तुक श्रावकों को सुनाते हुए कहा कि अहिंसा और सत्य एक-दूसरे से गुँथे हुए हैं और उन्हें अलग कर पाना व्यवहारतः असम्भव है। साथ ही उन्होंने आगे कहा-अहिंसा का अर्थ है अगाध प्रेम और प्रेम का अर्थ है कष्ट सहने की अपार क्षमता।
अहिंसा कोई क्रिया नहीं है। अहिंसा एक भाव है। ऐसा भाव जो जन्म-जन्मान्तरों तक जीव को सुखों से भर देता है। अहिंसा बाहर से सीखा गया गुण नहीं है। जैसे फूल में सुगन्ध, स्वर्ण में, पीताभ वर्ण, चीनी में मिठास और पानी में शीतलता है, वैसे ही आत्मा में अहिंसा उसका स्वाभाविक गुण है। पानी का स्वभाव शीतलता है। यदि कहीं गरम पानी के स्रोत के बारे में सुनते हैं कि अमुक स्थान में गरम पानी निकला है तो हम आश्चर्य करते हैं। आश्चर्य का कारण पानी के स्वभाव के विपरीत उसका गरम होना है। यदि आग पर पानी को गरम कर दें तो कालान्तर में वह ठण्डा-शीतल हो जाएगा, यानी अपने मूल स्वभाव को प्राप्त कर लेगा।
मुनि ने कहा हम जहाँ-जहाँ भी हिंसा देखते हैं, वहाँ वह ऊपर से ओढ़ा गया विकार है। हिंसा कभी स्थायी नहीं रहती। सिंह हिंसक प्राणी है, पर भरे पेट वाला सिंह कभी भी हिंसा नहीं करेगा। कसाई के भीतर की अहिंसा भी दबी-छिपी रहती है। वह अपने पालतू जानवरों को न तो स्वयं कष्ट देता है और न दूसरे को मारने देता है।
अशोक की कलिंग युद्ध में हिंसा से विरक्ति हुई और वह इतिहास प्रसिद्ध अहिंसक शासक हुआ। इसका कारण उसका अपनी आत्मा के स्वभाव में लौट आना था। कागभुशुण्डि से गरुड़ जी ने पूछा कि सबसे ऊँचा धर्म कौन-सा है तो कागभुशुण्डि ने उत्तर दिया था-वेदों में प्रतिपादित अहिंसा ही सबसे बड़ा परम धर्म है।परम यानी इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है-गांधी जी ने सत्य और अहिंसा का एक रूप बताया है। सत्य वह है जो कभी बदलता नहीं, सत्य वह है जो प्राणिमात्र की रक्षा, उससे प्रेम और सबका कल्याणकर्ता है।जो कुछ सत्य है,वह सब अहिंसा है।अहिंसक होने के लिए शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता नही,अहिंसक होने के लिए जैन बनने की आवश्यकता नही।जैन अहिंसक हो या न हो,पर अहिंसक जैन होता है।आज दुनिया में हिंसा का तांडव चल रहा है।हिंसा से किसी भी समस्या का समाधान नही है।धर्म यह नही कहता है कि निर्दोष  अत्याचार सहन करता रहे।विपत्ति आने पर शस्त्र उठाने के लिए गीता में भी उल्लेख है।

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