




मेनार में श्रीराम दरबार और 12 ज्योतिर्लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव : चार दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा का हुआ शुभारंभ
जीवन में पूजा, पाठ, तीर्थ, दर्शन आदि हो लेकिन साथ में सत्संग भी जरुरी है : पंडित माणकचन्द मेनारिया
वल्लभनगर (कन्हैयालाल मेनारिया बासड़ा)!वल्लभनगर उपखंड क्षेत्र के मेनार में दण्ड तालाब की पाल पर स्थित मंशापूर्ण कमलनाथ महादेव जी के समीप बने श्रीराम मंदिर में राम दरबार और 12 ज्योतिर्लिंग की प्राण-प्रतिष्ठा महोत्सव को लेकर बुधवार को 4 दिवसीय नानी बाई का मायरा कथा का शुभारंभ हुआ। इस अवसर पर माणक चंद मेनारिया महाराज के सानिध्य में पोथी का पूजन विधि विधान से किया गया। पंडित माणक चंद मेनारिया ने व्यासपीठ पूजन करके कथा प्रारंभ की। महाराज ने प्रथम दिन सूरदास जी, तुलसीदास जी, मीरा बाई, कबीरदास जी का वृतांत सुनाते हुए नानी बाई का मायरा कथा की शुरुआत की और ठाकुरजी के प्रति नामदेव जी की अटूट भक्ति का वर्णन किया। इधर, गुरुवार को ग्रामीणों ने वल्लभनगर प्रधान देवीलाल नंगारची, श्री शीतला माता जी निमंत्रण दिया गया। इस दौरान अधिवक्ता मुकेश कुमार मेनारिया, बाबूलाल डांगी, मुकेश गोपावत, भूपेंद्र मेनारिया, सुरेश चंद्र मेनारिया मौजूद थे।
कथा की शुरुआत में कथावाचक माणक चंद मेनारिया ने कहा कि मीरा बाई पहले श्री कृष्ण जी की पूजा करती थी। एक दिन संत रविदास जी तथा परमात्मा कबीर जी का सत्संग सुना तो पता चला कि श्री कृष्ण जी नाशवान हैं। समर्थ अविनाशी परमात्मा अन्य है। संत रविदास जी को गुरू बनाया। फिर अंत में कबीर जी को गुरू बनाया। तब मीरा बाई जी का सत्य भक्ति बीज का बोया गया। इस बीच “मार्ग में मिल गए नंदलाल, साथ में छोटे छोटे ग्वाल, चले मस्तानी चाल” “मुरली बजाने वाले, गिरवर उठाने वाले, हमको है आस आपकी”…ओ जाने वाले सांवरिया मैंने तुझे पहचान लिया”….मोहन आओ तो सही, गिरधर आओ तो सही, माधव रा मंदिर में मीरा एकली खड़ी…भजनों की धुन पर खूब भक्तगण थिरके और श्रद्धालुओं ने बड़ी ही श्रद्धा और तन्मयता से कथा का श्रवण किया।
कथा वाचक माणक चंद मेनारिया ने आगे कहा कि नानी बाई रो मायरो अटूट श्रद्धा पर आधारित प्रेरणादायी कथा है। जहां कथा के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण का गुणगान किया जाता है। भगवान को यदि सच्चे मन से याद किया जाए तो वे अपने भक्तों की रक्षा करने स्वयं आते हैं। पंडित ने कथा का विस्तार से वर्णन करते हुए कहा कि नानी बाई रो मायरो की शुरूआत नरसी भगत के जीवन से हुई। नरसी जन्म से ही गूंगे-बहरे थे। वो अपनी दादी के पास रहते थे। उनका एक भाई-भाभी भी थे। भाभी का स्वभाव कड़क था। एक संत की कृपा से नरसी की आवाज गई तथा उनका बहरापन भी ठीक हो गया। नरसी के माता-पिता गांव की एक महामारी का शिकार हो गए। पंडित ने कहा कि जीवन में पूजा, पाठ, तीर्थ, दर्शन आदि हो लेकिन साथ में सत्संग भी जरुरी है। संत और सत्संग का मिलना ईश्वर की कृपा पर निर्भर करता है, जिसकी सत्संग में रुचि होती वो कथा का पहला अधिकारी होता है। कथा सुनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु भवन में पहुंचे।
धर्म बोलियों की हुई शुरुआत
वरिष्ठ अधिवक्ता हुक्मीचंद सांगावत, ओंकारलाल भलावत ने बताया कि देर रात इस धार्मिक कार्यक्रम की धर्म बोलियों की शुरुआत हुई, जिसमें पहले दिन श्रीराम दरबार स्थापना 51000 रू. छोगालाल खेतावत, श्रीराम मंदिर पर ध्वजादंड स्थापना 31000 रुपये बंशीलाल मानावत, श्रीराम दरबार मंदिर पर स्वर्ण कलश स्थापना 55000 रुपये सोहनलाल लुणावत द्वारा बोलिया लगी, इसके साथ ही 12 ज्योतिर्लिंग में ओंकारलाल भलावत, प्रभुलाल सांगावत, छोगालाल खेतावत, कन्हैयालाल मन्द्रावत, हुक्मीचंद सांगावत, कन्हैयालाल/ नंदलाल दियावत, जगदीश दियावत, अम्बालाल रूपावत, ओंकारलाल मन्द्रावत एवं चंद्रशेखर, बालमुकुंद दियावत के नाम प्रत्येक ने 15 हज़ार रुपये की बोलियां लगाई।