





गोगुन्दा 24 मार्च (कांतिलाल मांडोत )! गोगुन्दा में परंपरागत दशा माता का पर्व उमंग और उल्लास के साथ धूमधाम से मनाया गया।आज सायरा क्षेत्र के सभी गांवों में दशा की पूजा अर्चना की गई। आज महिलाओं ने सामूहिक रूप से विधि विधान से पूजा अर्चना कर अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि की कामना की गई।तरपाल सुहावतो का गुड़ा पुनावली कमोल सायरा पदराडा एवं भानपुरा आदि गांवो में पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर महिलाओं ने दशा माता को व्यंजनों का भोग लगाया।सुबह से ही महिलाएं पारम्परिक परिधान में सुथारों के खेत के समीप पतवारी स्थित पीपल वृक्ष के निचे एकत्रित हुईं।उन्होंने बारी बारी से पीपल वृक्ष की दस बार परिक्रमा की गई।कच्चे सूत के धागे को परिक्रमा के साथ लपेटकर कर पूजन किया।परम्परा के अनुसार महिलाएं छोटी उंगली से पीपल वृक्ष की छाल का टुकड़ा घर ले जाती है और उसे आभूषण की तरह घर मे संभाल कर रखती है।यह परम्परा आज भी अक्षुण्ण है।आज महिलाओं ने सुखी छाल का टुकड़ा पूजन के बाद घर साथ मे ले गई।चंदा सुथार ने बताया कि दशा माता की पूजा अर्चना करने से घर मे सुख समृद्धि की वृद्धि होती है।पूजन के दौरान महिलाओं ने पीपल वृक्ष पर महिलाओं ने कुमकुम ,मेहंदी और हल्दी अर्पित की गई।हल्दी के आभूषण भी अर्पित किए गए।इसके साथ चुनरी ओढ़ाकर आटे और हल्दी से बने सोलह श्रृंगार की सामग्री भेंट की गई।साथ मे ढोल की थाप के साथ सामूहिक भजन और दशा माता की वार्ता की गई।पीपल वृक्ष की परिक्रमा और राजस्थानी लिबास में सजी धजी महिलाओं ने घूमर नृत्य कर हर्षोल्लास के साथ गीत की स्वर लहरी के साथ ही युवतियों ने लुफ्त उठाया।सुहागन महिलाओं का यह पर्व घर मे सुख समृद्धि और खुशहाली का प्रतीक है।महिलाओं ने पूजा अर्चना के बाद चावल और लापसी का भोग लगाया।उसके बाद महिलाओं ने नारियल अर्पित कर सुख की कामना के साथ दशा माता से समृद्धि का आशीर्वाद ग्रहण किया।इस दौरान महिलाओं ने शुभ का प्रतीक धागा पहना और मनोकामना पूर्ण करने की कामना की गई।महिलाओं के गले मे पहना जाने वाला साधारण धागा नही है।इसे वेल कहते है यह महिलाओं के गले मे तब तक रहती है जब तक दूसरी दशा माता का पर्व नही आता है।यह बारह महीने सुहागनों के गले मे रहती है।इस वेल को घर की समृद्धि और धन धान्य का प्रतीक रूप माना जाता है।यह धारणा रही है कि इस वेल को खंडित नही होने देते है।यहां तक टूटती नही है।एतएव आज नल दमयंती की कथा का श्रवण किया गया।
गणेश श्रीमाली ने बताया कि दशा माता को माँ पार्वती का स्वरूप माना जाता है।चैत्र कृष्ण पक्ष की दसमी तिथि का विशेष महत्व होता है ।यह त्रिवेणी स्वरूप की पूजा का विशेष महत्व होता है।घरों में दशा माता की प्रतीकात्मक स्थापना कर पूजन किया गया है।महिलाओं के समूह में एकत्र होकर सामूहिक पूजा की गई।विधि विधान से सामूहिक रूप से पीपल वृक्ष के नीचे महिलाओं ने आराधना की गई।रतन कुंवर ने बताया कि पर्व दस दिनों तक चलता है।हर रोज महिलाएं व्रत रखती है।आज दसमी तिथि को विशेष रूप से व्रत रखकर पूजा की गई ।दशा की पूजा अर्चना के साथ ही यह पर्व समाप्त हो गया।परिवार की समृद्वि और खुशहाली की प्रार्थना की जाती है।गांवो के मंदिरों में भी महिलाओं ने पूजा कर कथा श्रवण की गई।पीपल वृक्ष की पूजा की गई।महिलाओं ने अनुष्ठान कर पूजन किया।परिवार में सुख समृद्धि आती है ।अब गणगौर के पर्व की तरफ युवाओ का भारी क्रेज है।जिसको पारम्परिक तरिके से मनाने के लिए युवतियां भोलेनाथ को जलाभिषेक कर घर के लिए मंगलकारी भावना रखती है।