




श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ उमरणा के स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि म सा ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को सम्बोधित करते हुए कहा कि इस सदी ने ज्ञान विज्ञान की अनेक ऊंचाइयो को छूआ है किन्तु साथ ही एक पाप को भी सदी ने सर्वाधिक विकसित किया है वह पाप है अहंकार।मुझे कोई चुनौती नही दे सकता,मुझे चुनौती देने वाला समाप्त हो जाएगा ।सारे तर्क मेरे सत्य की ही पुष्टि करते है।मुझे चुनौती देने वाला समाप्त हो जाएगा आदि अहंकार के भाव आज हम कदम कदम पर देख रहे है।इस अहंकार ने भंयकर टकराव पैदा कर दिये है।हिंसा और अत्याचार के हजारों अध्याय जो आज रचे जा रहे है उनके पीछे अहंकार काम कर रहा है।मुनि ने कहा व्यक्ति ने सर्वप्रथम परमात्मा को नकारा,धर्म को नकारा,माता पिता और गुरुजनों को नकारा,अब अपने आसपास के सारे श्रेष्ठ मूल्यों को नकारने लगा है,हद तो वहां हो गई कि व्यक्ति अपने खून तक को नकारने को प्रस्तुत है।अहंकार का ऐसा घिनौना रूप मानवता ने सम्भवतः कभी नही देखा होगा।संत ने कहा अहंकार का यह सहस्त्र फना नाग जीवन की समस्त श्रेष्ठताओं को निगलता चला जा रहा है।समय रहते इसे आध्यात्मिक शक्तियों से कुचल देना चाहिए अन्यता यह मानवता का सर्वनाश प्रस्तुत कर देगा।धर्म मे वे शक्तियां है,जो इस पाप को मिटाकर रख दें, धर्म परमात्मा को अपने मे जागृत कर सकता है।रितेश मुनि ने कहा कर्मठता की क्षीणता का जो प्रभाव फैला वह आज भी अनेक अंशो में मौजूद है।जीवन मे मुस्कराहट तभी सम्भव है जब चिंता का आवरण नही रहता है चिंताग्रस्त मनुष्य का जीवन चेहरे की मुस्कान नही पा सकते है आज के दौर में चिंताजनक परिस्थितियों में आदमी झकडा हुआ है।उसके चेहरे की मुस्कान गायब है ।आज भी हम सिद्धान्तवादी अधिक है किंतु प्रयोगवादी कम है।प्रयोगवाद में कर्मठता और पुरुषार्थ काम आता है।वह अपने पास भी है लेकिन आलस्यवश ठीक ठीक प्रयोग नही करते।प्रभातमुनि ने कहा कि मानव की चेतना वह समुद्र है जिसमे जितने अधिक गोते लगाए जाये उतने ही मोती उपलब्ध होंगे।चिन्तन ही वह माध्यम है जिसमे आत्मिक गुणों के तत्व पाये जाते है।व्यक्ति आज सीमातीत बहिर्मुख होकर जी रहा है।इसलिए उसे स्वयं की विशेषताओं की पहचान नही हो रही है।
गोगुंदा – कांतिलाल मांडोत