




बिना जल के व्रत रखने से मिलता है वर्षभर की एकादशियों के बराबर पुण्य
खैरवाड़ा । तीर्थ नगरी ऋषभदेव में गंगा दशहरा के बाद शुक्रवार को निर्जला एकादशी मनाई गई। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कस्बे के मध्य स्थित श्री लक्ष्मीनारायण ठाकुरजी मंदिर में श्रद्धालुओं ने एकादशी व्रत कथा का श्रवण किया।
मंदिर के पुजारी ओम व्यास ने विवाहित जोड़ों को एकादशी व्रत कथा सुनाई। उन्होंने व्रत रखने के नियम और पारण की विधि भी बताई। कथा के बाद उपस्थित लोगों को प्रसाद वितरित किया गया।
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह सभी एकादशियों में सबसे कठिन व्रत माना जाता है। इस दिन जल का सेवन भी वर्जित होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार,पांडव पुत्र भीमसेन ने केवल यही एक एकादशी का व्रत रखा था। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। मान्यता है कि निर्जल रहकर उपवास करने से वर्षभर की सभी एकादशियों के बराबर पुण्य मिलता है। यह व्रत धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। श्रद्धा से व्रत रखने से अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। साथ ही सुखी और समृद्ध जीवन की कामना भी पूरी होती है। मंदिर के पुजारी ओम व्यास के अनुसार पंडित श्यामकिशोर त्रिवेदी के द्वारा अपनी हारमोनियम की मधुर ध्वनि पर महिलाओं ने भक्तिमय प्रस्तुतियां दीं। भजनों में ‘कान्हा आजा रे आजा’, ‘तेरे द्वार खड़ा भगवान’, ‘कान्हा रे कान्हा रे भूल मत जाना’ और ‘रसियो रूपलो रंगरेलियो घेर जाओ गमतु नथी’ शामिल थे।