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मिसाल : गर्मी में नंगे पैरों चलने वाले विद्यार्थियों को पहनाते हे जूते चप्पल

आठ वर्षों से लगातार जरूरत मंद छात्रों को जूते पहना रहे है
धरणेन्द्र जैन, खैरवाड़ा


खैरवाड़ा । “स्वयं का दर्द महसूस होना जीवित होने का प्रमाण है लेकिन औरों का दर्द महसूस होना इंसान होने का प्रमाण है” इन्हीं पंक्तियों को चरितार्थ कर रहे उदयपुर जिले की झाडोल तहसील के गांव मंगवास के रहने वाले अध्यापक और समाजसेवी ,भामाशाह प्रेरक नरेश लोहार जो कि पिछले 8 वर्षों से सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले जरूरतमंद ऐसे विद्यार्थी जो की भीषण गर्मी एवं सर्दी में भी नंगे पैरों विद्यालय जाने को मजबूर हैं ऐसे बच्चों की जानकारी प्राप्त कर उन बच्चों तक जूते और चप्पल पहुंचा कर उनकी मदद कर रहे हैं, इसी क्रम को आगे बढ़ाते हुए  जनजाति क्षेत्र झाडोल के पांच विद्यालयों के नंगे पैरों विद्यालय आने वाले बच्चों को चप्पल पहुंचा कर मिशन चरण कमल 8.0 की शुरुआत की है। इस गर्मी में नंगे पैरों चलने वाले विद्यार्थियों को चिन्हित कर उनको विभिन्न भामाशाहों के माध्यम से जूते चप्पल पहुंचा कर उन्हें विद्यालय से जोड़ने तथा उनकी मदद करने का प्रयास कर रहे हैं।

ऐसे हुई मिशन की शुरुआत:-
एक दिन जब अध्यापक ने विद्यालय जाते समय भीषण गर्मी में बच्चों को नंगे पैरों चलते देखा तो उन्होंने इन बच्चों की मदद करने की सोची तथा कुछ जोड़ी चप्पल अगले दिन लाकर इन बच्चों को दे दिए लेकिन विद्यालय से जाते समय जब ये सभी बच्चे चप्पल पहने दिखे उन्हीं में से एक लड़की जीसको सुबह चप्पल दिए थे फिर भी वह नंगे पैरों से ही चल रही थी अध्यापक ने जब उसे चप्पल के बारे में पूछा तो वह सहम गई तब दूसरे बच्चों ने कहा की चप्पल उसके बैग में है ,देखने पर चप्पल बैग में पुस्तकों के साथ रखे हुए थे इस पर जब अध्यापक ने उससे पूछा कि तूने चप्पल क्यों नहीं पहने तो इस पर उस लड़की ने कहा कि मैं इन्हें पहनूंगी तो ये फट जाएंगे तो फिर मैं कहां से लाऊंगी इसलिए इन्हें में सिर्फ कही आने जाने पर ही पहनूंगी, इन्हीं शब्दों ने अध्यापक का दिल झकझोर दिया और सोचने पर मजबूर किया और शुरुआत हुई “मिशन चरण कमल” की जिसके तहत प्रति वर्ष लगभग 2000 नंगे पैर चलने वाले विद्यार्थियों को जूते चप्पल पहुंचा कर उनकी मदद कर रहे हैं ।

हमेशा साथ रखते हैं चप्पल:- अध्यापक ने जब से ऐसे बच्चे जो कि नंगे पैरो चलने को मजबूर है की मदद हेतु मिशन बनाया तब से हमेशा ही अपने गाड़ी के बैग और स्कूल बैग में चप्पल रखते हैं तथा नंगे पैरों आते जाते दिखने वाले बच्चों को उसी समय चप्पल पहना कर अपने स्कूल की तरफ चल देते हैं ,अध्यापक अपने इस कार्य को इसलिए भी सफल मानते हैं क्योंकि उन्हें देखकर कहीं और भी लोग इस प्रकार से ऐसे बच्चों की मदद हेतु आगे आ रहे हैं और इन बच्चों की मदद का कार्य कर रहे हैं,अध्यापक के इस कार्य के लिए इन्हें अगर “जूता मैंन”भी कहा जाए तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

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