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न्याय तंत्र के प्रति आम आदमी के भरोसे को डिगने नही दिया जाए


✍️कांतिलाल मांडोत की कलम से…

सुप्रीम कोर्ट ने न्याय में देरी को लेकर काफी चिंता जताई है।मुकदमो का निराकरण नही होना एक गम्भीर समस्या है।लोगो को न्याय के लिए तारीख पर तारीख का सिलसिला  चलता रहता है।यहां तक सुनवाई नही होने के कारण अपराधी को वर्षो तक जेल में काटना पड़ता है।इस गम्भीर समस्या पर सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है।लेकिन इस चिंता का समाधन उनके पास भी नही है।न्यायाधीश भी कानून के दायरे में है।अपराधी का मौलिक अधिकार बाधित होता है।इस तरह गवाहों के बयान कराने में देरी और ट्रायल शुरू करने में विलंब के चलते अपराधी जेल में ही रहते है।कितने अभियुक्त बिना गवाही या जिरह की लेटलतीफी में जेल में ही दम तोड़ देते है सुप्रीम कोर्ट ने इस पर  संज्ञान भी लिया है।लेकिन समाधान का कोई विकल्प नही सूझ रहा है।जजो की कमी और दिन प्रतिदिन बढ़ते अपराध में वृद्धि को लेकर देश की कोर्ट भी कम पड़ती नजर आ रही है।न्याय में देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजो ने चिंता तो जताई है लेकिन वो भी समय पर न्याय नही मिलने की इस समस्या का निराकर नही कर सकते है।अपराध कम होंगे तो अभियुक्तों को न्याय भी समय पर मिलेगा।मुकदमो की सुनवाई में देरी के कारण मुकदमे की संख्या बढ़ती जा रही है।देश मे करोड़ो केस पेंडिंग है जिसकी सुनवाई समय पर नही हो रही है।सामान्य अपराधी को ही सुनवाई में देरी नही हो रही है,इसमें विधायक और सांसद भी लेटलतीफी की श्रेणी में आ गए है।उनके भी केस पेंडिंग है ।इस समस्या से निजात पाने के लिए देश मे अपराध जगत पर अंकुश लगता है तो अभियुक्तों को न्याय के लिए इंतजार नही करना पड़ेगा।देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को सोचना है कि लोगो को समय पर न्याय नही मिलने का क्या विकल्प रखा जाए?न्याय तंत्र के प्रति आम आदमी का भरोसा नही उठ जाए उसके लिए विकल्प तलाशने होंगे। इसमें न्याय जल्द मिलेगा।
            

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